Thursday, April 17, 2014

 


सुनो ज़िन्दगी ,
                       तुम  मखमली ,रेशमी बिस्तरों पे लेटकर लम्हों की तस्वीरें देखने में मसरूफ हो और मैं मुस्कुराते काले शिलाखंडों के बीच बैठ खुदा की बनाई कलाकृति  निहार रहा हूँ। कई जागती रातों में तुम गुलाबी सपनो के स्पर्श से मुस्कुराती रही हो ,मगर मै शबनमी साँझ के पैरहन मे खुश्बूओं को हर पल जी रहा हूँ। तुम बंद कमरे के इतिहास को पढ़ रही हो और मैं बगीचे के मासूम फूलों से गुफ्तगूं कर रहा हूँ। तुम कंक्रीट के जंगलों की दगाबाज रिश्तों को जीने में मस्त हो और मैं


No comments:

Post a Comment