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तुम कनाडा में हो
या
जर्मनी में
तेरा -मेरा सूरज एक है
फर्क है तो बस इतना
तुम शब्दों के महल में हो
मैं अहसास की झोपड़ी में
मगर साथी -
नींद की बिस्तरें तो एक -सी हैं
ढलती शाम की खुश्बूएं तो मिलती जुलतीं सी हैं
क्या ओस की बूंदों में
अपने वतन का चेहरा नहीं दिखता ?
जादुई हवाओं में
देश के अनकहे सपने नहीं होते ?
किसी मीठे पोखर के जल में
दादी -माँ की कहानी नहीं दिखती ?
फूलों की मुस्कराती मासूम चहरे पे
अपने गाँव के चौपाल नहीं दिखते ?
क्या साँझ की आरती में
कान्हा की बांसुरी नहीं बजती ?
सुबह की किरणे
सफ़ेद कबूतरों की याद नहीं दिलाती ?
लौट आ साथी
गलियों में
घुंघरुओं की सदा तेरा हाल पूछे है
दोस्तों की ग़ज़लें
खामोश हैं तुमबिन
कांच की गोलियाँ
उँगलियों के इंतेखाब में हैं
कही देर न हो जाये
बूढी ऑंखें बुझ न जाएँ
हाँथ की मेहंदी झर न जाएँ
निकल आ नकली दुनिया से
दुआओं के आँचल में सर रखके सोजा
मै जानता हूँ तू सोया नहीं एक पल
वतन से दूर
किसी को नींद आती है ?
वतन की दहलीज भी सोई नहीं
तेरे कदमों की आहट के वगैर।
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