मुक्तक
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गुमनाम रस्ता ,तन्हां शजर ,अब हँसता क्योँ नहीं ?
दिन आवारगी के /भूले -बिसरे कुछ कहता क्योँ नहीं ?
है परीशां दिल की बस्ती ,कहकहों के आलम में।
दो पल की ज़िन्दगी में,एक हमराज़ रहता क्योँ नहीं ?
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गुमनाम रस्ता ,तन्हां शजर ,अब हँसता क्योँ नहीं ?
दिन आवारगी के /भूले -बिसरे कुछ कहता क्योँ नहीं ?
है परीशां दिल की बस्ती ,कहकहों के आलम में।
दो पल की ज़िन्दगी में,एक हमराज़ रहता क्योँ नहीं ?
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