तन्हा शेर
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पुकारता है बेवजह तेरा शहर नहीं।
तेरी रहगुजर में है मेरा घर कहीं।
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हुए हम फ़ना तो क्या मुहब्बत जिन्दा है।
इक शम्मा बुझ गयी सौ चिराग़ फिर जलेंगे।
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कौन जाने हे मेरे पेट का दरद ?
जो रोटी मिली तो सब्जी नदारद।
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वो सुनता नहीं है ,मैं कहता रहता हूँ।
क्या सोंचता है यही सोंचता रहता हुँ.
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SUNDAR
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