Thursday, April 24, 2014



                         तन्हा शेर

                      -----------
           पुकारता  है बेवजह तेरा शहर नहीं।
           तेरी रहगुजर में है मेरा  घर  कहीं।
------------------------------------------------
हुए हम  फ़ना  तो क्या  मुहब्बत  जिन्दा है।
इक शम्मा बुझ गयी सौ चिराग़ फिर जलेंगे।
-------------------------------------------------
कौन जाने हे मेरे पेट  का   दरद ?
जो रोटी मिली तो सब्जी नदारद।
-------------------------------------------------
वो सुनता नहीं है ,मैं कहता रहता हूँ।
क्या सोंचता है यही सोंचता रहता हुँ.
------------------------------------------------

1 comment: