Saturday, March 8, 2014

मेरे अभिन्न ,ये ब्लॉग उनके लिये है जो इस कायनात को अपना घर समझते हैं। ज़मीं के किसी भी कोने में कोई भी हलचल हो तो आपको महसूस होना चाहिए। कहीं किसी कोने में कोई आंसू टपके या मुस्कुराहटों के फूल खिले आपको पता होना चाहिए। ज़िंदगी क्या है ,बस उसे सोंचते रहना ,और मौत उसके ख्याल से महरूम हो जाना। "फूल सी पत्ती को जलती हुई शाम ना दे। मेरे अहसास को रिश्तों का कोई नाम ना दे। मेरी ख़ामोशी में अजीब शोर का आलम है। मेरे लफ्जों को ज़बां होने का इल्ज़ाम ना  दे।  डॉ मनोज सिंह मजबूर 

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