- मुक्तके :शहर जाने किसका है ,घर रहे अपना।
- चाँद से चेहरे पे दोपहर रहे अपना।
- शोहरत की धुंद में ज़िंदा रहे ज़मीर।
- चेहरों की भीड़ में ख़बर रहे अपना।
सांस लेना यहाँ क़यामत से कम नहीं।
उस मोड़ पे कैसे फिर मिलते दुबारा।
कभी तुम नहीं आये तो कभी हम नहीं।
तमाम उम्र जेहन में कोई आया ही नहीं।
किसी ख्वाब से रेशमी रिश्ता ही नहीं।
जिस शजर को अपने लहू की मिट्टी दी।
उस शाख का मेरे सर पे साया ही नहीं।
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