Tuesday, April 15, 2014
Tuesday, April 1, 2014
khuda ko
सूरज की रौशनी की क्या गरज मुझको।
मैंने चिरागों को घर में जला रखा है।
मुझसे दुनिया खफा है तो खफा ही रहे।
मैंने सांसों में ख़ुदा को बसा रखा है।
मैंने चिरागों को घर में जला रखा है।
मुझसे दुनिया खफा है तो खफा ही रहे।
मैंने सांसों में ख़ुदा को बसा रखा है।
khayalon ke tukre
मुस्सर्रत हैं बेशुमार पर कुछ कमी सी है।
मुस्कुराती हुई आँखों में नमी सी है।
खाबों को छू नहीं सकता आसमां सा है।
दामन की रंगीं धूप भी ज़मीं सी है।
मुस्कुराती हुई आँखों में नमी सी है।
खाबों को छू नहीं सकता आसमां सा है।
दामन की रंगीं धूप भी ज़मीं सी है।
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