skyfansclub . sabd ke pahle,sabd ke bad.
Saturday, May 2, 2015
Saturday, April 18, 2015
भूख और कविता
आँखे बहती रहीं हैं चुपचाप
कभी पलकों के पार गयी
कभी जज्ब कर गयी
नन्ही उंगलियां बाजुओं को तरसीं
कभी मिट्टीओं को कुरेदती रहीं
कभी सूखे होटों के पास ठिठकी
आज भी कलम में रौशनाई नहीं
मजबूरियां बहतीं हैं
शब्दों में /शब्दों के बाहर
और शब्द
कोई फरही -फुट्टा नहीं
कि खाली पेट के गणित को
सुलझा ले
और आदर्शों के पानी से
होटों की पपड़ियों को गीला कर लें
हाँ ,नींद की रेशमी बिस्तर है
जहाँ सदियों से जागती/सोती हैं
मेरी भूख /मेरी कवितायेँ।
आँखे बहती रहीं हैं चुपचाप
कभी पलकों के पार गयी
कभी जज्ब कर गयी
नन्ही उंगलियां बाजुओं को तरसीं
कभी मिट्टीओं को कुरेदती रहीं
कभी सूखे होटों के पास ठिठकी
आज भी कलम में रौशनाई नहीं
मजबूरियां बहतीं हैं
शब्दों में /शब्दों के बाहर
और शब्द
कोई फरही -फुट्टा नहीं
कि खाली पेट के गणित को
सुलझा ले
और आदर्शों के पानी से
होटों की पपड़ियों को गीला कर लें
हाँ ,नींद की रेशमी बिस्तर है
जहाँ सदियों से जागती/सोती हैं
मेरी भूख /मेरी कवितायेँ।
Thursday, March 12, 2015
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skyfansclub . sabd ke pahle,sabd ke bad.: ...: -लघुकथा -प्रश्न --------------...
Wednesday, March 11, 2015
एक अधूरा ख़त-एक अजनबी के नाम ----------------------------------------------- सुनो -------? ----------? मुख़्तलिफ़ चेहरे हैं पर तुम नहीं हो। उदासियों ,तन्हाइयों का मौसम और मैं तन्हां -सा ?कोई तो नहीं था तुम्हारे सिवा और अब तुम भी नहीं। कहाँ हो ?मीलों चला हूँ ,सदियों जगा हूँ। सफ़र में बेवजह हूँ -कोई अर्थ नहीं। हाँ ,समुन्दर की लहरें साहिल पे दम तोड़ती है और मैं ख़ुद में। रेशमी हवाओं से साँस जलती है। मीठे पोखर पोखर के पानी मेरे आँसुओं से नमकीन हो गए हैं। दरीचे से अब चाँद मेरे घर नहीं आता। अब क्या करूँ ? मैं अब तो रो भी नहीं पाता,आंसूं जो नहीं निकलते। ये ख़त क्यों लिख- रहा मालूम नहीं। फिर ? दुनिया संगदिल फिर ? ---------------- तेरे मेरे बीच का लेकिन।
Friday, March 6, 2015
Wednesday, May 28, 2014
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